माँ कभी निष्ठुर नही होती

माँ कभी निष्ठुर नही होती
5 जून- विश्वपर्यावरण दिवस के अवसर परअपने मन की बात आप सभी तक पहुंचाना चाहती हूँ । कोरोना के इस संकट काल में पूरा विश्व इस वायरस से निपटने के उपाय खोजने में लगा है। वो छोटासा वायरस जिसका कद हमसे कई हजारो गुना छोटा है, उसने हमारे जीवन को बुरी तरह प्रभावित किया है। उस अदृश्य शत्रु को इतनी शक्ति कैसे प्राप्त हुई यह विचारणीय है। जिस प्रकृति की गोद में हम इंसान अपना वर्चस्व बनाये हुए हैं उसी की गोद में वो अदनासा या नगण्य वायरस इतनी तबाही मचा रहा है । कभी लगता है कि हम मनुष्य ही इसके जिम्मेदार हैं, हमने जो बोया आज वही काट रहे हैं। हमने प्राकृतिक संतुलन को बिगाड़ दिया है,भूमि , वायु ,जल सभी को अशुद्ध कर दिया है। स्वार्थ के वशीभूत होकर हमने प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुन दोहन किया और अब भी कर रहे हैं। प्रकृति हमे प्राणवायु दे रही और हम उसकी सांसो को विषैला बना रहे हैं। उसने हमें गंगा का पवित्र जल दिया और हमने आज गंगा को ही विश्व की सबसे अधिक प्रदूषित नदी बना दिया। कभी लगता है प्रकृति हमसे रूठ गई है उसी तरह जैसे एक माँ अपने बच्चों की गलतियों पर कभी- कभी रूठ जाती है , पर उम्मीद की एक किरण सदैव रहती है कि आज नही तो कल प्रकृति फिर से सब कुछ वैसा ही कर देगी जैसा पहले था। अभी भी समय है प्रकृति की इन अनमोल धरोहरों को सँवारकर रखने का वरना हमारी आने वाली पीढ़ियों के बारे में सोचकर ही मन कांप जाता है कि क्या उन्हें शुद्ध हवा मिल सकेगी? क्या उन्हें शुद्ध जल मिल सकेगा या बॉटल बन्द पानी ही एक मात्र सहारा रह जायेगा? यह सोचकर मेरा कवि मन बहूत व्यथित है। अपने मन की इसी वेदना को प्रकट करने के लिए कुछ पंक्तिया 'माँ प्रकृति' के नाम- माँ कभी निष्ठुर नही होती रूठती है पर मुंह नही मोड़ती नाराज रहे पर कुपित न होती माँ की कोई उपमा न होती माँ कभी निष्ठुर नही होती। विष कर दी उसकी सांसे सदा प्राणवायु ही देती छलनी करदी छाती उसकी पर गंगा का नीर ही देती माँ कभी निष्ठुर नही होती। मुंह छुपाये घुम रहे सब मन ही मन पछताते क्या करें अब समझ न पाते किन्तु आस यही लगाते माँ कभी निष्ठुर नहीं होती। कठिन समय है विकट स्थिति जैसी करनी वैसी भरनी देकर सजा सन्तानो को अंतर्मन में वह रोती माँ कभी निष्ठुर नही होती। आज रूठी है कल मानेगी अपने आँचल में खुद तानेगी मांग लो माफी अभी समय है हर सजा में एक सिख ही देती माँ कभी निष्ठुर नही होती।

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