जल दिवस

जल दिवस
*विश्व जल दिवस* 22/3/2024 नदियाँ मानव सभ्यता की जननी कहलाती हैं। हमारी भारतीय संस्कृति में नदियों को माता का दर्जा दिया गया है। मंदसौर में शिवना जैसी पवित्र नदी का होना हम मंदसौर वासियों के लिए बड़े ही सौभाग्य और गर्व की बात है, लेकिन अनेक प्रयासों के बावजूद भी हम अपने जीवनदायिनी शिवना नदी को सहेज कर नहीं रख पा रहे हैं। इसका क्या कारण है? इस विषय पर हम सभी को गहराई से विचार करने की आवश्यकता है। मुक्तिधाम के समीप शिवना नदी को जलकुंभी ने पूरी तरह से ढक लिया है। आए दिन अखबारों में खबर आती है कि शिवना नदी में बढ़ती जलकुंभी को हटाने के अनेकानेक प्रयासों के बावजूद जलकुंभी का प्रकोप दिन-दिन बढ़ता जा रहा है, जो एक चिंता का विषय है। इस समस्या का निवारण करना अत्यंत आवश्यक है। नदी में मौजूद जलकुंभी हटाने का प्रयास तो करना ही चाहिए, साथ ही हमें ऐसे प्रयास करने चाहिए कि जलकुंभी उगे ही ना। पहले हम जलकुंभी के बारे में जान लेते हैं। जलकुंभी एक तैरने वाली जलीय खरपतवार है। भारत में इसे समुद्र सोख नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि जलकुंभी के कारण पानी के वाष्पोत्सर्जन की दर अत्यधिक बढ़ जाती है। यह पौधा प्रजनन द्वारा एक बार में हजारों बीज़ उत्पन्न कर सकता है, और उनके बीज कई वर्षों तक पानी के अंदर दबे पड़े रहते हैं, अनुकूल स्थिति आने पर उग जाते हैं और थोड़ा सा भी पोषण मिलने पर बहुत ही तेजी से वृद्धि करते हैं। इस पौधे को अत्यधिक पोषक तत्व, विशेष रूप से कृषि अपवाह और अनुपचारित सीवेज से मिलते हैं जो जल निकायों में जलकुंभी के अतिवृद्धि का मुख्य कारण है। औद्योगिक प्रदूषण जल निकायों में जलकुंभी के विकास का मुख्य कारण है, उद्योगों से भारी धातुओं और पोषक तत्वों, और कार्बनिक पदार्थों जैसे प्रदूषकों से यूट्रोफिकेशन होता है, जिससे जलकुंभी के पनपने के लिए अनुकूल परिस्थितियां पैदा हो सकती हैं। इसके अतिरिक्त, औद्योगिक प्रदूषण पानी की गुणवत्ता को प्रदुषित करते है, साथ ही जलीय पारिस्थितिक संतुलन को बाधित कर देते है, जिससे जलकुंभी जैसी आक्रामक प्रजातियां तेजी से वृद्धि करती है। जल निकायों में जलकुंभी हानिकारक प्रभाव पैदा करती है जैसे कि पानी के नीचे के पौधों तक सूरज की रोशनी को पहुंचने से रोकना, ऑक्सीजन के स्तर को कम करना जो जलीय जीवन के लिए हानिकारक होता है, जल प्रवाह में बाधा डाल सकता है, जो बाढ़ का कारण बन सकता है, और मच्छरों के लिए प्रजनन स्थल उपलब्ध कराना, जिसमें बीमारियों का खतरा बढ़ सकता है। जलकुंभी के कारण मछलियों के प्रजनन में बाधा उत्पन्न होती है, और बड़ी संख्या में मछलियों की मृत्यु भी हो जाती है। नदी का प्रदूषण होना जल संसाधनों पर निर्भर मानव समुदाय के लिए महत्वपूर्ण चुनौती है। पानी से जलकुंभी को पूरी तरह से खत्म करने के लिए, भौतिक, जैविक और रासायनिक तरीकों का प्रयोग किया जाना चाहिए। बेहतर अपशिष्ट प्रबंधन, बेहतर कृषि पद्धति और औद्योगिक निर्माण पर सख्त नियमों जैसी व्यापक रणनीति के माध्यम से जलकुंभी को समाप्त करने के प्रयास किये जाने चाहिए। खरपतवार जलकुंभी को हटाना काफी महंगा होता है, इसलिए जलकुंभी उत्पन्न ही ना हो सके इस तरह के प्रयास करना चाहिए, और अगर फिर भी जलकुम्भी उगे तो हम इससे उपयोगी वस्तुएं बनाने का नवाचार करने की कोशिश करेंगे। इस तरह का नवाचार किया गया है केरल के प्रोफेसर डॉ. नागेंद्र प्रभु ने इंदौर में जलकुंभी से कागज(क्वालिटी पेपर) बनाकर तैयार किया है। डॉ. नागेंद्र प्रभु ने सेंटर फॉर रिसर्च ऑफ एक्वेटिक रिसोर्स नामक अपने इंस्टिट्यूट की मदद से ग्रामीणों को जलकुंभी से कागज बनाने का प्रशिक्षण दिया। असम में रहने वाली शिवानी सिंह ने जलकुंभी के पौधों से घरेलू उपयोग में आने वाली टोकरी, चटाई तैयार कर अच्छी आमदनी प्राप्त की। राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन व उद्योग केंद्र भी जलकुम्भी से बने उत्पादों की मार्केटिंग कर रहे हैं जलकुंभी से नए और उपयोगी उत्पादों का निर्माण करके हम इसे समाप्त करने के लिए प्रयास कर सकते हैं और साथ ही पर्यावरण को संरक्षित कर सकते हैं। डॉ. प्रेरणा मित्रा सहायक प्राध्यापक वनस्पति विज्ञान शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय मंदसौर

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