इंसान रो रहा है।

इंसान रो रहा है।
ये तूफान ये मंजर यूंही नही हुआ होगा। ये बे मौसम बारिश हो रही है, शायद खुदा भी रो रहा होगा। कुछ तो गलती होगी इंसान की तभी ऊपर वाले ने ये सब रचा होगा। हिला रहा है वो प्रथ्वी को थोड़ा, यहां इंसान बहक रहा है पूरा। दृश्य ये असहनीय सा हो रहा है, ए खुदा ये क्या हो रहा है? यहां इंसान रो रहा है। मंजिल छूट रही है हाथो से, ऐसा क्यूं लग रहा है। तूफान है कभी,कभी है कोरोना, ऐसा क्यूं हो रहा है? यहां ब्लैक फंगस जान ले रहा है, इंसान इंसान ना रहा, खुदका पेट काट रहा है। लॉकडाउन से बहक रहे है लोग, कभी विश्वास तो कभी परिवार डगमगा रहा है। कैसी है ये महामारी खुदा, यहां इंसान रो रहा है। हर्षा बाबानी

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