स्कूल और विद्यालय की वास्तविक परिभाषा मेरे शब्दों में

स्कूल और विद्यालय की वास्तविक परिभाषा मेरे शब्दों में
दोस्तों स्कूल और विद्यालय, यह दो शब्द एक दूसरे के पर्यायवाची शब्द के रूप में जाने जाते हैं l क्या यह शब्द वास्तव में एक दूसरे के पर्यायवाची है, यह हम वर्तमान समय को देखते हुए अपने आप से पूछ सकते हैं स्कूल और विद्यालय वैसे तो बच्चों के पढ़ने का स्थान होता है किंतु वास्तव में देखा जाए यह कोई स्थान नहीं बल्कि एक पूजनीय मंदिर होता है जहां हम अपने बच्चों को पढ़ने के लिए भेजते हैं एक साधारण माता पिता यही चाहते हैं कि मेरा बच्चा स्कूल या विद्यालय जाए पहली से लेकर 12वीं तक पढ़ाई करें फिर आगे कॉलेज की पढ़ाई करें और एक अच्छी सी डिग्री लेकर कोई नौकरी करें और अपने पैरों पर खड़ा हो जाए किंतु मैं उन पालकों से पूछना चाहता हूं कि जब आप अपने बच्चों को स्कूल या विद्यालय में प्रवेश दिलाते हैं तो क्या आपके मन में यह बात आती है कि मेरा बच्चा स्कूल जा रहा है या विद्यालय अब आपके मन में यह प्रश्न खड़ा होगा की स्कूल और विद्यालय तो एक ही है जी नहीं मैं उन तमाम माता पिता से यह बात कहना चाहूंगा की स्कूल और विद्यालय किसी भी परिस्थिति में एक नहीं हो सकते और मैं उसका हर्ष के साथ प्रमाण दे सकता हूं एक पालक अपने बच्चे को स्कूल भेजता है शिक्षित होने के लिए जहां पर उसे पूर्ण रूप से लेखनी का ज्ञान हो पुस्तक पढ़ने से लेकर समझ जब तक का ज्ञान हो और अंत में परीक्षा में सफल होकर एक मार्कशीट के साथ घर की ओर प्रस्थान करें, यही क्रम हर वर्ष चलता है और एक नई मार्कशीट के साथ बच्चा घर में प्रवेश करता है माता पिता उसके अंको को देखकर खुश होते हैं या नाराज होकर बच्चों को डांटते हैं दोस्तों क्या आपने वास्तव में कभी सोचा है कि हर वर्ष की इस मार्कशीट की भाग दौड़ में हम वास्तव में बच्चों के साथ क्या कर रहे हैं , हम अपने बच्चों को सिर्फ और सिर्फ किताबी ज्ञान और पश्चिमी सभ्यता के गुण सिखा रहे हैं जिसमें मुख्य रुप से हम बच्चों को अंग्रेजी में पारंगत होकर उसमें बात करना शामिल होती है दोस्तों हमारी भारतीय परंपरा आश्रम व्यवस्था पर निर्भर थी और उस व्यवस्था के दौरान हम अपने बच्चों को विषय ज्ञान के साथ-साथ संस्कार शिक्षा माता पिता गुरु समाज और मित्रों के साथ किस प्रकार व्यवहार करना है यह सिखाया जाता है गुरु द्वारा दिए गए इन संस्कारों में मुख्य रूप से माता-पिता को आदर करना उन्हें प्रणाम करना उनका चरण स्पर्श करना शामिल होता है जिन्हें आज के समय में हम विद्यालय कह सकते हैं किंतु स्कूल रूप में परिवर्तन होने के पश्चात हम गुड मॉर्निंग गुड आफ्टरनून गुड इवनिंग और गुड नाईट और आकर रुक गए हैं कॉन्वेंट स्कूल और नेशनल स्कूल इंटरनेशनल स्कूल पब्लिक स्कूल और मशीनरी से जुड़े हुए स्कूलों में अपने बच्चों का दाखिला कराने के पश्चात हम हमारे भारतीय संस्कृति से बच्चों को कोसों दूर करते हैं जा रहे हैं मेरा अर्थ यहां यह कतई नहीं है कि बच्चों को तकनीकी ज्ञान और प्रैक्टिकल नहीं होना चाहिए मेरा अर्थ है तकनीकी ज्ञान और प्रैक्टिकल होने के साथ-साथ बच्चों में सुसंस्कार के साथ विद्या अर्जन करते हुए भारतीय संस्कृति को बरकरार रखें जो इन स्कूल शब्द में ग्रास लिया है आजकल के बच्चे गुरु का सम्मान तो दूर की बात है अपने खुद के माता-पिता को सम्मान देना तक उचित नहीं समझते प्रातः उठकर चरण स्पर्श करना तो दूर उठकर सीधे-सीधे गुड मॉर्निंग बोलना पाश्चात्य सभ्यता को बढ़ावा देना और हमारी भारतीय संस्कृति को समाप्त करना वर्तमान समय 21वीं सदी का अवश्य हो सकता है परंतु किसी भी सदी की शिक्षा में यह नहीं कहा गया कि माता पिता और गुरु के सम्मान कुंठित हो....l धन्यवाद

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