"ठंडी चाय- A love story❤❤" by Aarti Thacker.

रोज की तरह गाड़ी से उतरकर नेहा घर की और आगे बढ़ रही थी।पर आज उसका मन पांच साल पीछे अतीत की और बढ़ रहा था। गेट खोलकर वो घर मे दाखिल हुई। "आ गई बेटा?" "हाँ बाबा।" हाथ मुंह धोकर उसने चाय पी। बाबा की चाय का और उसके आने का समय निर्धारित था। कभी ओवरटाइम करना होता था तो वह फोन कर देती थी। वरना बाबा गर्मागर्म चाय के साथ दिन भर की खबरें भी नेहा को सुना देते थे। "आज बारिश होगी लगता है। टीवी में बता रहे थे। देखो.. आँधी भी शुरू हो गई है।" "हाँ बाबा"। इतना कहकर नेहा उठी और किचन में चली गई। खाना बनाते बनाते वो सोच रही थी कि 'आंधी नही बाबा,तूफान आया है। पांच साल पहले जिस राकेश को वो रिक्कू कह कर बुलाती थी,आज वो फिर सामने था किंतु आज वो रिक्कू नही राकेश सर् था। हवा के एक तेज झोंके ने गेस का बर्नर बुझा दिया।नेहा ने खिड़की बन्द कर दी और फिर से गेस चालू कर दी। 'काश की अतीत के झरोखो की भी कोई खिड़की होती तो उसे फट से बंद कर वो यादों के उस तूफ़ान को रोक देती जो उसके मन में उथल पुथल मचा रहा था। पर नही, आज वो बेबस थी।आज ऑफिस में नया स्टाफ अपॉइंट हुआ था। इंट्रोडक्शन के समय की आवाज़ नेहा के कानों में अब भी गूंज रही थी- "Meet Mr Rakesh Sharma..new C.A. of our company." नेहा निःशब्द हो गई थी...बमुश्किल उसके मुंह से "गुडमार्निंग सर्" निकला था। पूरा दिन वो ऑफिस में खोई सी बैठी रही। किसी काम में मन नही लग रहा था। फिर से सामना न हो जाये बस इसी क्षण से वो कतरा रही थी।जैसे तैसे काम निपटा कर वो पांच मिनट पहले ही उठ गई थी और सीधे ऑफिस की गाड़ी के पास पहुंच गई थी जो उसे पिकअप और ड्राप करने आती थी। "चलिए बाबा खाना तैयार है।" नेहा ने खाना परोसते हुए आवाज लगाई। "बेटा कढ़ी में नमक डालना भूल गई हो आज"। "अभी सुधार देती हूं बाबा।" बाबा ने नेहा को देखते हुए पूछा ,"क्या बात है, ऑफिस में सब ठीक तो है ना?? "जी..जी हाँ. वो बस... जरा लाइट न चली जाए यही सोच कर जल्दीबाजी में बनाया है इसलिए शायद नमक डालना भूल गई।.." नेहा ने बाबा के मन में आये ऑफिस के विचार को धकेलने की कोशिश की। खाना खा लेने के बाद उसने बाबा को दवा दी और थोड़ी देर बाबा के पास बैठकर टीवी देख वो अपने रूम में चली गई।अलमारी से उसने अपनी एक पुरानी डायरी निकाली और उसके पन्ने पलटने लगी। 14 फरवरी 2015...एक सूखा हुआ गुलाब, उस पन्ने पर अब भी दबा हुआ रखा था। उस सूखे गुलाब का सुर्ख रंग और उसकी खुशबू उसके जेहन में आज भी ताजा थी। राकेश ने इस गुलाब के साथ ही अपना दिल भी नेहा को दे दिया था। दोनों अच्छे दोस्त थे..एक दूसरे को समझते भी थे.. ग्रेजुएशन के तीन साल पूरे होने को थे..राकेश सी.ए. करने के लिए मुम्बई जाना चाहता था और जाने से पहले उसने अपनी भावनाएं एक गुलाब के फूल से जाहिर की थी। वो चाहता था कि शादी इस प्यार का परिणाम हो। उस दिन भी नेहा निःशब्द हो गई थी। बहुत सोच विचार कर उसने राकेश से कहा कि मैं बाबा से बात करूँगी। "क्या करता है लड़का?" "जीअभी तो कुछ नहीं...सी.ए.करने के लिए मुम्बई जाने वाला है।" "बेटा उसके सी.ए. के लिये मैं कितना इंतजार करूँगा? क्या तब तक तुम्हें ऐसे ही बैठे रहने दूँ घर में। जिंदगी का कोई भरोसा नही बेटा।...कभी सोचा नही था कि तुम्हारी आई भी इतनी जल्दी हमें छोड़कर चली जायेगी। मुझे भी कुछ हो गया तो तुम दोनों बहनों कौन देखेगा। मेरे जीते जी तुम्हारे हाथ पीले कर दूं तो तुम रुचि को संभाल लोगी। तुम्हारी बुआ ने एक लड़का देखा है,एक दो दिन में आने वाले है वो लोग तुम्हें देखने।" नेहा ने राकेश को रुंधे गले से सब बताया था और कहा कि "रिक्कू मैं बाबा का विरोध नही कर सकती। वो न सिर्फ हमारे बाबा हैं, बल्कि हमारी आई भी हैं।माँ बनकर पाला है उन्होंने हम दोनों बहनों को।कभी कोई कमी नही होने दी। इसलिए आज अगर वो मेरे जीवन से जुड़ा कोई फैसला लेते है, तो मैं उसे नकार कर उनको दुःख नही पहुँचा सकती।माफ् कर दो मुझे।" राकेश झूठी मुस्कुराहट के साथ यही कह सका कि "तुम्हारे हर फैसले में मैं तुम्हारे साथ हूं। " उसके बाद बाबा की पसंद से शादी और वो कड़वी यादें.. नेहा की आंखों से आँसू गिरने लगे।खिड़की से आये आंधी के तेज झोंके के साथ डायरी के कुछ पेज ऐसे फड़फड़ाये जैसे बन्धनों से छूटना चाहते थे। नेहा ने आंसू पोछे और उस सूखे गुलाब को फिर डायरी में दबा दिया और सो गई। अगली सुबह सब काम निपटा कर ऑफिस पहुँची, मन नही था जाने का पर सीनियर अकाउंटेंट थी इसलिये जाना जरूरी था। कितनी ही फाइलें उसकी टेबल से राकेश की टेबल तक जा चुकी थी।पर न वो राकेश के केबिन में गई न ही राकेश ने कभी उसे बुलाया। पन्द्रह दिन बीत गये।आज सुबह से ही तेज बारिश हो रही थी। ऑफिस जल्दी क्लोज कर दिया गया था । ऑफिस की गाड़ी जाम में फंस गई थी।सूचना आ गई थी कि सभी घर पहुंचने का इंतजाम कर लें। नेहा भी रिक्शा के इंतजार में खड़ी थी। "नेहा....अगर एतराज न हो तो मैं ड्राप कर दूं।"राकेश की आवाज सुनकर नेहा चोंक गई। "नहीं.. मैं रिक्शा से चली जाऊंगी।" "बारिश में इंदौर के इस ट्रैफिक में रिक्शा मिलना मुश्किल है, आओ मैं तुम्हें ड्रॉप कर देता हूं ।" "नहीं बस रिक्शा आता ही...." "I said come inside.."कहते हुए राकेश ने गेट खोल दिया। राकेश की आदेशात्मक आवाज सुनकर नेहा चुपचाप गाड़ी में बैठ गई। दोनों और खामोशी का एक शोर था । कई सवाल थे जो दोनों एक दूसरे से पूछना चाहते थे। पहल राकेश ने ही की। "बाबा कैसे हैं तुम्हारे ?" "ठीक है "। छोटा सा जवाब देकर जैसे वो बात को वहीं खत्म कर देना चाहती थी। थोड़ा आगे जाकर राकेश ने एक कॉफी शॉप के सामने गाड़ी रोक दी। "क्या हुआ गाड़ी क्यो रोक दी तुमने?" "एक एक कप कॉफी हो जाए" । "नहीं राकेश लेट हो जाऊंगी, बाबा इंतजार कर रहे होंगे।" "प्लीज नेहा, तुमसे कुछ बात करना चाहता हूं ,प्लीज!" राकेश के चेहरे की मायूसी देखकर नेहा उसका कहा टाल नहीं सकी। कॉफी का मग हाथ में लेते हुए राकेश ने पूछा,"तुम्हारी शादी हो गई थी ना ...? "मत पूछो, बुरा समय था आया और चला गया।" "मुझे नही बताओगी?" "दहेज के लोभी थे, कुछ दिन और वहां रहती तो मार दी गई होती। बाबा मुझे वापस घर ले आए और वो रिश्ता वही खत्म हो गया।" "दूसरी शादी...?" " नहीं.. बाबा इतने दुखी थे कि दूसरी शादी का फैसला उन्होंने मुझ पर छोड़ दिया और मैंने भगवान पर। रुचि एम.बी.बी.एस. करने भोपाल गई है। मैं बाबा को अकेला नहीं छोड़ना चाहती।" राकेश ने एक लंबी सांस ली। "तुम कहो तुम्हारी शादी हो गई"? नेहा ने पूछा। "नहीं कोई मिली ही नहीं, या यूं कहूं तुम जैसी कोई मिली ही नहीं ।" "मुझमें ऐसी कोई खूबी नहीं, मुझसे अच्छी मिल जाएगी।" यह कहकर नेहा ने अपनी कॉफ़ी खत्म की और गाड़ी में बैठ गई। दोनों और फिर एक गहरी खामोशी थी। नेहा की बताई जगह पर राकेश ने उसे ड्रॉप कर दिया ,नेहा थैंक यू कह कर घर की और चल दी। बाबा इंतजार कर रहे थे। "आ गई बेटा।" "हां बाबा।" "लेट हो गई आज...!" "हां बाबा... कुछ जरूरी काम था ऑफिस में । नेहा ने नज़रे चुराते हुए कहा। टेबल पर रखी दो कप चाय ठंडी हो चुकी थी। आज पहली बार बाबा को इन्फॉर्म करना भूल गई थी। उसका मन ग्लानि से भर गया।रात भर उसके मन में विचारों की कितनी ही लहरें आई और लौट गई।अगले दिन ऑफिस जाने के लिए तैयार हुई और बाबा से बोली बाबा आज मैं ऑफिस से रिजाइन कर रही हूं । अब वहां काम करने का दिल नहीं करता मैं कहीं और जॉब ढूंढ लूँगी।" बाबा चोंक गए, बस इतना ही बोले-" लेट हो जाओगी.. शाम को बात करते हैं।" आफिस पहुंची तो देखा राकेश का केबिन खाली था। कई सवाल मन मे उठ रहे थे।दिल बेचैन था।जैसे तैसे अपना रेसिग्नशन लेटर देकर घर लौट आई। हमेशा की तरह बाबा और चाय दोनो उसका इंतजार कर रहे थे।फ्रेश होकर बाबा के पास बैठी। " यह रिक्कू वही राकेश है ना जिसके बारे में तुमने मुझसे जिक्र किया था पाँच साल पहले।" बाबा के मुंह से राकेश का नाम सुन कर नेहा घबरा गई।उसके माथे पर पसीने की बूंदे छलक आई।जैसे तैसे खुद को संभाल कर बोली । "हां बाबा । पर आप ये क्यों पूछ रहे हैं।" "तुम्हारे जाने के बाद आज वो घर आया था ,अपने माता पिता के साथ।तुम्हारा हाथ मांगने। पर उसने एक शर्त रखी है कि शादी के बाद मुझे भी अपने पास ही रखेगा।" नेहा की जैसे सांस ही रुक गई थी। उसके मुंह से आवाज नही निकल रही थी। "कल उसी की वजह से तेरे बाबा की चाय ठंडी हो गई थी ना? बाबा मुस्कुराते हुए बोले। "बाबा...माफ् कर दीजिए मुझे । मैंने कल आपसे झूठ बोला।" नेहा की आंखों से अविरल आंसू बह रहे थे। "अरे पगली... उस ठंडी चाय ने आज मेरे कलेजे में जो ठंडक दी है , वो तू नही समझेगी। दोनों की आंख से खुशी के आँसू बह रहे थे।

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