बाढ़ में बहा प्रशासन ढूंढे नही मिल रहा
मंदसौर ।शुक्रवार व शनिवार को मंदसौर में इंद्र देवता इस तरह बरसे जैसे मंदसौर से कोई खुन्नस हो । बारिश से जन जीवन बदहवास हो गया, बस यही आवाज कि, की हे प्रभु अब दया करो । घरों में पानी , दुकानों में पानी पुलिया पर पानी,सड़को पर पानी, पानी ने ऐसा उधम मचाया की जन जीवन बेहाल ही नही जिंदगी की भीख मांगने लगा । मकान के मकान जलमग्न हो गए, जान बचाने के लिए छत, दूसरी तीसरी मंजिल भी नाकाफी थी । जान बचाने सपनो का महल छोड़ राहत शिविरो का सहारा लेना पड़ा ।धानमंडी क्षेत्र, कालिदास मार्ग, दयामन्दिर रोड, शुक्ला चौक, बस स्टैंड, कैलाश मार्ग सहित तमाम शहर की निचली बस्तियां जलमग्न थी। जैसे ही शनिवार रात को बारिश थमी तो जलभराव उतरने लगा जो पीछे भयावह नज़ारे छोड़ता गया । धीरे धीरे शहर व जिले की बर्बादी की कहानी पता चली । व्यापारियों के माल, ग्रामीणों के खेत की फसल चौपट हो गई,मकान ढह गए चारों और तबाही की हंसी सुनाई पड़ी । सुकून सिर्फ एक बात का था कि मंदसौर ने जाती पंथ मजहब छोड़ एक दूसरे के आंसू पोंछता नजर आया । न कोई भीम,न कोई तिलक धारी, नकोई रंग विशेष का केवल इंसानियत की मिसाल ने नई इबारत रच दी । जो इस भयावह बारिश की तरह सदैव यादगार रहेगी । प्रशासन निरीह ,असहाय बेबस सा बस अलर्ट जारी करने को मशीन बनकर रह गया । प्रशासन शासन तो मंदसौर जिले में प्रदर्शनी की तरह प्रतीत हो रहा था । सत्ता धारी दल के लोग खाना पूर्ति करते रहे तो विपक्षी दल के जन प्रतिनिधि भी बारिश थमने के बाद दबे से निकले, वही भाजपा संघ के दूसरे तीसरे पंक्ति के कार्यकर्ताओं ने तारीफे काबिल काम किया कांग्रेस की भी तीसरी पंक्ति भी मैदान में थी । विपक्षी भूमिका में आये शिवराज ने अपना रिश्ता निभाते हुए मंदसौर के हाल पूछने सबसे पहले इंट्री की लेकिन वे भी 1000 करोड़ के जुमलेबाजी में उलझ गए । लेकिन हक की लड़ाई का वादा कर नई आस बंधा गए । शिवराज की अपील के बाद भाजपाई राहत सामग्री बांटने में और प्रदेश भर से राहत सामग्री पहुंचाने में उदासीन सत्ताधारीयों से आगे निकल गयी वही शासन और प्रशासन एक सी हालत में अलसाया और सुस्ती में डूबा डूबा सा है जो बड़े गुस्से का कारण बन सकता है ।
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