सेजपुरिया में सात दिवसीय श्रीमद्भागवत कथा संपन्न हुई
मंदसौर~ सेजपुरिया में आयोजित भागवत कथा का हुआ विश्राम, जिसमें आस पास की एवं ग्राम वासी धर्म प्रेमी जनता ने भागवत कथा का आनंद लिया
कथा वाचक मानस भारती सु श्री अपर्णा जी नागदा मेनारिया ने कथा के वाचन में कहा कि कथा कभी समाप्त नही होती कथा का विश्राम होता आज यहां तो कल कही और प्रारम्भ होगी ।
आगे विश्राम दिवस में बताया कि
भागवत का अर्थ है भक्ति, ज्ञान वैराग्य और तारण। भागवत न सिर्फ आध्यात्म सिखाती है, बल्कि भागवत से जीवन जीने की राह भी मिलती है। भागवत का आध्यात्मिक अर्थ - भा यानी भक्ति, ग यानी ज्ञान, व मतलब वैराग्य और त से तत्व है। गृहस्थ गृहस्थ जीवन में भी रहकर वैराग्य धारण कर सकते हैं। कैसे कर सकते हैं, ये कला भागवत में है। जन्म लिया, पढऩे के बाद कमाया खाया और जीवन का अंत हो जाता है। कई बार मालुम ही नहीं लगता कि जीवन का उद्देश्य क्या है। भागवत यही कला सिखाती है। त्याग, तपस्या, मोक्ष के साथ जीवन जीने की सही राह भागवत की बताती है। सद्गुणों और सतकर्म को हमने जीवन में कितना उतार लिया है। ये मंथन करने का विषय रहता है। कैसे उतार सकते हैं, ये कला भी भागवत सिखाती है। भक्ति, ज्ञान वैराग्य और तारण भागवत में ही समाहित है। शामगढ से पधारे कथा व्यास अपर्णा जी नागदा मेनारिया ने भागवत के महत्व पर प्रकाश डाला। अपर्णा जी कहते हैं, भागवत के श्रवण् से इश्वर और हमारे पूर्वजों को सर्वाधित प्रसन्नता होती है। जब जीवन में भक्ति की शुरुआत होती है तो हमारे भीतर ज्ञान पैदा होता है। ज्ञान के साथ वैराग्य की भी उत्पत्ति होती है। इसके बाद वैराग्य मजबूत होने पर धीरे-धीरे परमात्मा की प्राप्ति होती है। अगर कलयुग में भगवान को रिझा लिया जाए तो किसी के सामने झुकने की जरूरत नही
यदि मन में प्रकाश होता है, तो व्यक्ति के चेहरे पर कभी मायूसी नहीं आती है। भगवान श्रीराम के राज्य तिलक की तैयारियां की जा रही थीं, लेकिन तभी उन्हें 14 साल वनवास के लिए जाना पड़ा। दोनों ही परिस्थितियों में उनके मन में निराशा के भाव नहीं आए। मन को तारने के लिए हमें नियमित सत्संग में जाना पड़ता है। नियमित सत्संग और भजन करने से पुण्योदय संभव है। संसार में काम, मोह, लोभ, ईर्ष्या और द्वेष व्यक्ति के शत्रु हैं। हमें भोजन से नहीं, बल्कि भजन से अपना वजन बढ़ाना है। जो व्यक्ति भगवान के भजन करता है, तो भगवान सदा के लिए उसके हो जाते है
सुदामा चरित्र की कथा का वर्णन भी किया गया ।
अपर्णा जी ने बताया कि सुदामा संसार में सबसे अनोखे भक्त रहे हैं। वह जीवन में जितने गरीब नजर आए, उतने वे मन से धनवान थे। उन्होंने अपने सुख व दुखों को भगवान की इच्छा पर सौंप दिया था। श्रीकृष्ण और सुदामा के मिलन का प्रसंग सुनकर श्रद्धालु भावविभोर हो गए। उन्होंने कहा कि जब सुदामा भगवान श्रीकृष्ण ने मिलने आए तो उन्होंने सुदामा के फटे कपड़े नहीं देखे, बल्कि मित्र की भावनाओं को देखा। मनुष्य को अपना कर्म नहीं भूलना चाहिए। अगर सच्चा मित्र है तो श्रीकृष्ण और सुदामा की तरह होना चाहिए। जीवन में मनुष्य को श्रीकृष्ण की तरह अपनी मित्रता निभानी चाहिए।
सुदामा चरित्र के पश्यात अपर्णा जी ने , परीक्षित मोक्ष की कथा सुनाई। कहा कि संसार में मनुष्य को सदा अच्छे कर्म करना चाहिए, तभी उसका कल्याण संभव है। माता-पिता के संस्कार ही संतान में जाते हैं।संस्कार ही मनुष्य को महानता की ओर ले जाते हैं। श्रेष्ठ कर्म से ही मोक्ष की प्राप्ति संभव है। अहंकार मनुष्य में ईष्र्या पैदा कर अंधकार की ओर ले जाता है। उन्होंने कहा कि श्लोक कर्मण्ये वाधिकारस्ते मा फलेसु कदा चनि:। मनुष्य को सदा सतकर्म करना चाहिए। उसे फल की चिंता ईश्वर पर छोड़ देनी चाहिए। कथा में भगवान कृष्ण की लीलाओ का भावपूर्ण वर्णन किया गया। जिसमें भजन'अरे द्वारपालो कन्हैया से कह दो कि दर पे सुदामा गरीब आ गया है'पर भाव विभोर हो श्रोताओं की आंखों से अश्रुधार बही । । कथा में अपर्णा जी ने कहा की मोक्ष का शाश्वत साधन है श्रीमद भागवत। पांच दिन में सम्राट परीक्षित को जब मोक्ष हुआ तो ब्रह्मा जी ने अपने लोक में एक तराजू लगाई। इसके एक पलडे़ में सारे धर्म और दूसरे में श्रीमद भागवत को रखा तो भागवत का ही पलड़ा भारी रहा। अर्थात सारे वेद पुराण शास्त्रों का मुकुट है बड़ी संख्या में महिला-पुरुष मौजूद थे समिति के सदस्यों ने पोथी पूजन एवं कथा वाचक अपर्णा जि का सम्मान किया उसके पश्यात महाआरती हुई एवं अपर्णा जी को आगामी कथा हेतु विदाई दी।
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