एक तरफ मप्र सरकार कोरोना जैसी महामारी में जी जान से लगी है दूसरी और जेल विभाग जेल में परिरुद्ध बन्दियों के स्वास्थ्य के प्रति लापरवाह है व इनके स्वास्थ्य से लगातार खिलवाड़ हो रहा है ।प्रदेश की विभिन्न जिला जेलों व सब जेलों पर मप्र मानवाधिकार आयोग के नियमानुसार पैरामेडिकल स्टाफ नही है इसका उदाहरण सब जेल जावद,सब जेल जावरा, सब जेल सैलाना,सर्किल जेल रतलाम, और यहाँ तक कि जिला जेल मन्दसौर जैसी संवेदनशील जेल भी है। जिला जेल मन्दसौर पर चिकित्सक का एक नियमित पद स्वीकृत है जिस पर सालो से कोई भर्ती विज्ञापन जारी नही हुआ ।इस प्रकार जेलों पर तकनीकी रूप से सक्षम स्टाफ की कमी के कारण कई बार आपातकालीन परिस्थिति में बन्दी को जान से हाथ धोना पड़ता है यह जेल विभाग की कुम्भकर्ण रूपी नींद को दर्शाता है।इन परिस्थिति में जब कि कोरोना जैसी भयानक महामारी सामने खड़ी है तब कैसे जेल में परिरुद्ध बन्दी स्वास्थ्य लाभ ले पाएंगे और कैसे संक्रमण से अपने आपको बचाएंगे?
ऐसी विकट स्थिति में जब सारा जहाँ इस भयानक आपदा से निपटने में लगा है तब जेल विभाग बिना उचित उपकरणों और बिना मास्क और सेनिटाइजर के आखिर किस प्रकार बन्दी भाइयो को बचाएगा।
वर्तमान में सर्किल जेल रतलाम में मल्हारगढ़ के बन्दी द्वारा आत्महत्या की गई उस वक्त भी सर्किल जेल रतलाम में कोई भी पैरामेडिकल स्टाफ नही था और न ही चिकित्सक उपस्थित थे। सवाल ये है कि फांसी लगाने के बाद क्या समय पर उपचार मीला? पम्पिंग समय पर हो पाई? लापरवाही क्या केवल छोटे कर्मचारियों की ही थी? उचित मात्रा में मास्क ,सेनिटाइजर, टूथ ब्रश, टँग क्लीनर,टूथ ब्रश, साबुन,की उपलब्धता है कि नही? साथ ही जब किसी कैदी को बैरक से बाहर निकाला जाता है तो जेलर की मौजूदगी में निकाला जाता है परंतु सुनने में आया है कि कुछ दिन पूर्व रतलाम में कैदी ने जेल में आत्महत्या की थी उस समय जेलर उपस्थित नही थे और जेलर अपनी जवाबदारी से दूर हट गए और निलंबित 2 प्रहरी हो गए जिसमे एक मुख्य प्रहरी था और एक प्रहरी था। ओर सारी गाज इन पर गिर दी गयी